मंगलवार, 1 जून 2010

मुसलमान


या खुदा मेरी तुझ से एक इल्तिजा है
मैं मुसलमान  हूँ क्या ये मेरी सज़ा है

जब भी वक़्त आये
सर हमने भी कटाए
ऐ वतन तुझे सलाम
नारे हमने भी लगाये

फिर वतनपरस्ती पे हमारी क्यों शक-ओ-शुबा है
मैं मुसलमान हूँ क्या ये मेरी सज़ा है

हर कोई है पुकारे
क्यों हम को ललकारे
ईमान हमारा मज़बूत
हम ना किसी से हारे

      हमारी जीत क्यों हर ज़बान का मुद्दा है
में मुसलमान हूँ  क्या ये मेरी सज़ा है

गद्दार हमें कहते हैं
सदमे में हम रहते हैं
ऐ खुदा तेरे लिए
हर ज़ुल्म हम सहते हैं

बे-सब्री पे हमारी फिर भी दुनिया खफा है
मैं मुसलमान हूँ क्या ये मेरी सज़ा है

खूरेजों काक ओई मज़हब नहीं होता
बे-अमनी का बीज वो ओता
दीन हमारा रहबर है
मुसलमान खूरेज़ नहीं होता

मेरी मज़हबी किताब मेरी बात की गवाह है
मैं मुसलमान हूँ क्या ये मेरी सज़ा है

मासूमो को है मारा
गुस्सा हम पर उतारा
कह रहे थे लोग वो
ये देश नहीं हमारा

 
हम पर ज़ुल्म करने वालो बतलाओ क्या वजह है
मैं मुस्लमान  हूँ क्या ये मेरी सज़ा है

हमवतनो की मोहब्बत चाहिए
मादरेवतन की अजमत चाहिए
हम कोई गैर नहीं
हमें भी अपना हक चाहिए
 

हिंद की अवाम है 'अमीक' दोयम दर्जे का क्यों समझा है
मैं मुसलमान हूँ क्या ये मेरी सज़ा है