मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

ज़िन्दगी

मुझे ज़िन्दगी का मकसद समझा दो 
मुझे प्यार का मफहूम बतला दो

मैं परीशां  हो दर दर का भिखारी
 खुदा के वास्ते खुदा का दर दिखला दो

इक दिल की आरज़ू में ये दिल है बेकल
दिल दे के कोई मेरा दिल बहला दो

परवाज़ करे परिंदा नशेमन की आस में
तवील जहाँ में इसको कोई तो पनाह दो

मेरी मौत पे तो वो आयेंगे वो यकीनन
बहारे महबूब के लिए दयारे अमीक सजा दो 

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

बेवफा

मोहब्बत करने का लोग कायदा पूछते हैं
दिल देने का मुझ से फायदा पूछते हैं

हमें होश नहीं उन्हें देखने के बाद
कब हुयी इश्क की इब्तेदा पूछते हैं

हरसूं उनके दिल में हमारा बसेरा
और वो मुझ से मेरा पता पूछते हैं

मेने इश्क में खुद को लुटा दिया
खैरियत अब मुझ से बेवफा पूछते हैं

उनसे मोहब्बत की भीख में उम्र कट गयी
कब्र पे आकर अब वो एक इल्तिजा पूछते हैं

मेरी ज़िन्दगी खुद एक ग़ज़ल बन गयी
मेरे महबूब मुझ से मतला' पूछते हैं

मेने भी आज उन्हें मुड़ के नहीं देखा
'अमीक' क्यों तुम हो खफा पूछते हैं