अपनी मोहब्बत का यकीन दिलाना है
हमें भी एक ताजमहल बनाना है
जमुना की पाकीजगी का क्या भरोसा
तामीर-ए-वफ़ा में सिर्फ अपना लहु मिलाना है
ज़लज़ला-ए-इश्क सह न सकेगा संग-ए-मरमर
इमारत में जज्बातों का हमें पत्थर लगाना है
शहंशाह हम नहीं खजीने हमारे खाली हैं
दौलत के लिए खुद को दिल-ओ-जान से लुटाना है
लाख मजदूरों की औकात नहीं हमारी
ये मेरा महल है बस चार को ही बुलाना है
फिर आकर कब्र पर मेरी लिख देना तुम ऐ 'अमीक'
ये गरीबो का ताजमहल है ये वफ़ा का आस्ताना है