गुरुवार, 24 जनवरी 2008

मेरा ताजमहल

अपनी मोहब्बत का यकीन दिलाना है
हमें भी एक ताजमहल बनाना है

जमुना की पाकीजगी का क्या भरोसा
तामीर-ए-वफ़ा में सिर्फ अपना लहु मिलाना है 

ज़लज़ला-ए-इश्क सह न सकेगा संग-ए-मरमर 
इमारत में जज्बातों का हमें पत्थर लगाना है

शहंशाह हम नहीं खजीने हमारे खाली हैं
दौलत के लिए खुद को दिल-ओ-जान से लुटाना है
लाख मजदूरों की औकात नहीं हमारी 
ये मेरा महल है बस चार को ही बुलाना है

फिर आकर कब्र पर मेरी लिख देना तुम ऐ 'अमीक'
ये गरीबो का ताजमहल है ये वफ़ा का आस्ताना है